गजल-हमर दुश्मन सब आई हित भ गेलै-दिनेश रसिया
हमर दुश्मन सब आई हित भ गेलै ।
दुख परलै त दूर हमर मीत भ गेलै ।
पहिने त हमहि सोना, हमहि चानी छलि,
आई सोना, चानी सs प्रित भ गेलै ।
जे कहै छलै, सासँ धरि आश छै
ओकरे परिबर्तित रीत भ गेलै ।
जानै ने शुर आ गाबै मल्हार
हमर संठीक टाट, ओकर भीत भ गेलै ।
छोरब नै संग कहै छलौ सबदीन,
हमर भेलै हार ओकर जीत भ गेलै।
दिनेश रसिया
संस्थापक अद्यक्क्ष
मिथिला स्टुडेन्ट युनियन नेपाल
Labels: साहित्य/विविध
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